वार्ड फुल और डॉक्टरों पर लोड ज्यादा, मुश्किल में मरीजों की जान
ग्वालियर। अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जेएएच के वार्ड मरीजों से भरे हुए हैं और बेड फुल होने पर उन्हें जमीन पर लेटकर इलाज कराना पड़ रहा है। साथ ही डॉक्टरों पर भी अधिक भार है। हालात यह है कि जूनियर डॉक्टरों को 24 से 36 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ रही है। मरीजों की अधिक संख्या और संसाधनों की कमी पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता है। अस्पताल की व्यवस्थाओं को सुधारने के नाम पर निरीक्षण करने वाले माननीय भी बगलें झांक कर चले जाते हैं। अस्पताल की मूल समस्या को दूर करने की बात कोई नहीं करता है।
यह है स्थिति-
ट्रॉमा सेंटर-
बेड संख्या-28
28 बेड के ट्रॉमा सेंटर में अंचल सहित यूपी, राजस्थान के मरीज आते हैं, जो दुर्घटना में घायल होकर यहां आते हैं। ट्रॉमा में 10 बेड आईसीयू में हैं, जहां पर अतिगंभीर मरीजों को आईसोलेशन में रखा जाता है। पर हर दिन यहां 50 से अधिक मरीज भर्ती होने पहुंचते हैं। जिनके साथ सैकड़ों अटेंडेंट भी पहुंचते हैं। जो डॉक्टरों व स्टाफ पर बेहतर इलाज के लिए दबाव बनाते है पर वे लोग डॉक्टरों की परेशानी नहीं समझते हैं।
न्यूरोलॉजी विभाग-
बेड संख्या-40
स्टाफ की कमी के चलते न्यूरोलॉजी विभाग के पास 25 बेड, जबकि 15 बेड न्यूरोसर्जरी विभाग के पास हैं। हर दिन ओपीडी 100 से 200 मरीज की होती है। भर्ती मरीजों की संख्या 12 से 15 रहती है। जिसके कारण मरीजों को बेड उपलब्ध नहीं हो पाते। न्यूरोलॉजी विभाग दो डॉक्टरों के भरोसे है। यदि एक डॉक्टर अवकाश पर होता है तो दूसरे को 24 घंटे की ड्यूटी करनी होती है।
आईसीयू-
बेड संख्या -28
पत्थरवाली बिल्डिंग के सामने स्थित आईसीयू में 28 बेड हैं। जिसमें 20 बेड मेडिसिन के और 8 बेड पॉइजन व किडनी के मरीजों के लिए हैं। हर दिन 15 से 20 मरीज भर्ती होने पहुंचते हैं। जिसके कारण मरीजों को जमीन पर गद्दे डालकर इलाज देना पड़ता है।
बेड बढ़ाने कई बार की मांग-
ट्रॉमा सेंटर में बेड बढ़ाने अस्पताल प्रबंधन की ओर से मांग भी की गई। पर बेड बढ़ाने को लेकर शासन की ओर से हरीझंडी नहीं मिली। अब इंतजार इस बात का है कि हजार बिस्तर का अस्पताल बने तब व्यवस्थाओं में कोई सुधार हो। अस्पताल की अव्यवस्थाओं और खामियों को लेकर जनप्रतिनिधि भी चुपी साध जाते हैं।
दलाल तंत्र हावी-
ट्रॉमा सेंटर में मरीजों का लोड अधिक होने का फायदा आसपास खुले निजी अस्पतालों के दलाल उठाते हैं। ट्रॉमा की बदहाली और डॉक्टरों द्वारा ध्यान न दे पाने की बात कहकर दलाल मरीजों को ले जाते हैं। दलाल निजी अस्पताल में मरीज को भर्ती कराकर उसकी जेब खाली कर देते हैं।
अस्पताल में हर मरीज को बेहतर इलाज देने का प्रयास रहता है। यही कारण है कि दूर-दूर से मरीज यहां इलाज लेने पहुंचते हैं। हजार बिस्तर का अस्पताल बनते ही यह समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।
डॉ.विनीत चतुर्वेदी, सहायक अधीक्षक, जेएएच
विधायक का वर्जन और दूंगा