कृष्ण-सुदामा चरित्र ुन भाव-विभोर हुए श्रोता

कृष्ण-सुदामा चरित्र ुन भाव-विभोर हुए श्रोता


पिछोर। पिछोर क्षेत्र के ग्राम मेहगांव के नौगवां सिद्ध खो पर आयोजित की जा रही संगीतमय श्रीमद भागवत कथा में रविवार को सुदामा चरित्र प्रसंग का वर्णन किया गया। इसे सुनकर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए और उनकी आंखे नम हो गईं।


कथाव्यास शास्त्री रामकुमार उपाध्याय ने सुदामा चरित्र प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करना चाहिए। सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र का हर परिस्थिति में साथ दे और जरुरत पड़ने पर बिना कहे निःस्वार्थ मदद करे। परंतु आजकल केवल स्वार्थ की मित्रता रह गई है, जो स्वार्थ पूरा होने पर खत्म हो जाती है। उन्होंने बताया कि अपनी पत्नी के कहने पर जब सुदामा मित्र से मिलने के लिए द्वारिकापुरी पहुंचते हैं, तो महल के द्वार पर द्वारपाल उन्हें रोक देते हैं। जब सुदामा खुद को भगवान श्रीकृष्ण का मित्र बताते हैं। यह बात सुनकर कुछ द्वारपाल सुदामा का उपहास उड़ाते हैं लेकिन एक द्वारपाल अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को सूचना देता है बाहर एक सुदामा नाम का ब्राह्मण खड़ा है जो खुद को आपका मित्र बता रहा है। सुदामा का नाम सुनकर भगवान श्रीकृष्ण नंगे पैर दौड़कर बाहर जाते हैं और सुदामा को रथ पर बैठाकर महल में लाते हैं और अपने सिंहासन पर बैठाकर खुद नीचे बैठते हैं। यह देखकर भगवान कृष्ण की तीनों रानियां अचंभित रह जाती है। मित्र की दीनहीन दशा देखकर भगवान श्रीकृष्ण के आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह आंसुओं से सुदामा के पैर धोते हैं। अपने मित्र की दरिद्रता को दूर करते हैं। दो मुट्ठी चावल के बदले में दो लोक सुदामा के नाम कर देते हैं। कथा के अंत में परीक्षित ओमप्रकाश कस्तूरी देवी नगाइच भागवत पुराण की आरती उतारते हैं और श्रोताओं को प्रसाद वितरण करते हैं। इस अवसर पर भानू प्रकाश नगायच, विनीत सोनी, डॉ. राहुल रावत, शशिप्रकाश, वेद प्रकाश नगायच, आकाश नगायच, रोहित उपाध्याय, जयप्रकाश, आत्म प्रकाश, तपन नगायच, विकाश, रिषभ उपाध्याय, गगन दुबे, कल्याण सिंह कुशवाह सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।